हाथी और चूहा की कहानी : पंचतंत्र की कहानी
एक राज्य में एक राजा का शासन था। हर सप्ताह पूरी शानो-शौकत से नगर में उसका जुलूस निकला करता था, जहाँ प्रजा उसके दर्शन किया करती थी।
एक दिन एक नन्हा चूहा उसी राजमार्ग के किनारे-किनारे कहीं जा रहा था, जहाँ राजा का जुलूस निकलने वाला था। वह चूहा था तो छोटा सा, मगर उसका घमंड बहुत बड़ा था और वह ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ और महान समझता था।
कुछ देर बाद राजमार्ग से राजा का भव्य जुलूस निकला, जिसे देखने लोगों की भीड़ लगने लगी। राजा अपने पूरे दल-बल के साथ था। उसके सैनिक उसे घेरे हुए थे। कई मंत्री और अनुचर उसके पीछे थे। वह एक विशाल शाही हाथी पर सवार था। हाथी शाही था। इसलिए उसे भव्यता से सजाया गया था और उसकी शान भी देखते बनते थी। जुलूस में हाथी के साथ एक शाही बिल्ली और एक कुत्ता भी थे।
राजा का जुलूस देखने को उमड़ी भीड़ राजा के साथ-साथ उसके शाही हाथी की भी प्रशंसा कर रहे थी। यह सुनकर घमंडी चूहे को बहुत बुरा लगा।
वह हाथी को गौर से देखने लगा, फिर सोचने लगा – ‘इसमें ऐसी क्या ख़ास बात है, जो मुझमें नहीं। मैं भी उस जैसा ही हूँ। मेरे पास भी दो आँखें, दो कान, एक नाक और चार पैर हैं। फिर उसकी इतनी प्रसंशा क्यों? उसके विशाल शरीर के कारण, लंबी सूंड के कारण, छोटी-छोटी आँखों के कारण या झुर्रीदार चमड़ी के कारण। किस कारण? एक बार तुम लोग मुझे देख लो, उस हाथी को भूल जाओगे। मैं हाथी से ज्यादा महान हूँ।‘
चूहा ये सब सोच ही रहा था कि शाही बिल्ली की नज़र उस पर पड़ गई और उसकी लार टपक गई. जुलुस छोड़ वह उसकी ओर लपकी। फिर क्या था? चूहा अपनी सारी महानता भूलकर दुम दबाकर भागा। भागते-भागते वह हाथी के सामने आ गया। आगे बढ़ते हाथी ने उस पिद्दी से चूहे को देखा तक नहीं और अपना विशाल पैर उठा लिया। चूहा उसके पैर के नीचे कुचलने ही वाला था, मगर किसी तरह उसने ख़ुद को बचाया।
वहाँ से बचा, तो खतरनाक कुत्ता सामने था, जो उसे देखकर गुर्राया। चूहा पूरी जान लगाकर वहाँ से भागा और राजमार्ग के किनारे स्थित एक छेद में घुस गया। उसका सारा घमंड उतर चुका था। उसे समझ आ चुका था कि वह इतना भी श्रेष्ठ और महान नहीं।
सीख
किसी से मात्र रूप रंग की समानता हमें महान नहीं बनाती। महान हमारे गुण और कार्य बनाते हैं।
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